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कविता

कैदी लंबरदार

लाल सिंह दिल


वह जेल का था लंबरदार
नंगा लँगोटे में
नीम के नीचे टहलता था उस दिन
मेरी बैरक के आगे आकर रुक गया
बाँहें लहराईं
घोड़े की टाप-सा नाच नाचा
और चिल्लाया :
''हमारे खेत... हमारे खेत।''
कहता आगे बढ़ गया

मुजारे का वह बेटा था
बरछों के साथ बींधा था
उस जमींदार के लड़के को
जो था उसी की उम्र का


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